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Azad bharat aur : bose bandhu / by Sisir Kumar Bose.

आज़ाद भारत और बोस बंधू / शिशिर कुमार बोस के द्वार। By: Language: English Publication details: New Delhi : Prabhat Prakashan, 2016.Description: 238 p. : ill. ; 23 cmISBN:
  • 9789386231017
Subject(s): DDC classification:
  • 923.254 BOS/A
Summary: मैने अपने दादाजी श्री शरतचंद्र बोस को कभी नहीं देखा। मेरे जन्म से छह वर्ष पूर्व ही उनका देहावसान हो चुका था। मुझे जो कुछ भी अपने पिताजी शिशिर कुमार बोस के विषय में याद है, वह बिल्कुल वैसा ही है जैसा वे स्वयं अपने पिताजी के विषय में याद करते थे, ‘‘जब मैं बहुत छोटा बच्चा था, तब से लेकर अंत तक मेरे पिता मुझे सदैव काम करते ही नजर आए।’’ मेरे पिताजी के काम के प्रति समर्पण के पीछे उनके ‘रंगाकाकाबाबू’ सुभाष चंद्र बोस का यह प्रश्न भी प्रभावी था, जब उन्होंने दिसंबर 1940 में पूछा था, ‘‘अमार एकटा काज कोरते पारबे?’’ (अर्थात् मेरा एक काम कर सकोगे?) उस चामत्कारिक घड़ी के बाद से शिशिर कुमार बोस ने कभी भी नेताजी का काम करना बंद नहीं किया। तात्कालिक ‘काज’ या काम तो था जनवरी 1941 में भारत से नेताजी के विदेश जाने की योजना बनाना और उसे क्रियान्वित करना। स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद सन् 1957 में उन्होंने नेताजी रिसर्च ब्यूरो की स्थापना की। नेताजी के अनुज श्री शरतचंद्र बोस का प्रेरणाप्रद जीवनवृत्त, जो कालखंड की महत्त्वपूर्ण घटनाओं पर भी प्रकाश डालता है।
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Rajbhasha Book (Hindi) Rajbhasha Book (Hindi) Central Library, IIT Bhubaneswar Central Library, IIT Bhubaneswar RB 923.254 BOS/A (Browse shelf(Opens below)) Available RB1351
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मैने अपने दादाजी श्री शरतचंद्र बोस को कभी नहीं देखा। मेरे जन्म से छह वर्ष पूर्व ही उनका देहावसान हो चुका था। मुझे जो कुछ भी अपने पिताजी शिशिर कुमार बोस के विषय में याद है, वह बिल्कुल वैसा ही है जैसा वे स्वयं अपने पिताजी के विषय में याद करते थे, ‘‘जब मैं बहुत छोटा बच्चा था, तब से लेकर अंत तक मेरे पिता मुझे सदैव काम करते ही नजर आए।’’ मेरे पिताजी के काम के प्रति समर्पण के पीछे उनके ‘रंगाकाकाबाबू’ सुभाष चंद्र बोस का यह प्रश्न भी प्रभावी था, जब उन्होंने दिसंबर 1940 में पूछा था, ‘‘अमार एकटा काज कोरते पारबे?’’ (अर्थात् मेरा एक काम कर सकोगे?)
उस चामत्कारिक घड़ी के बाद से शिशिर कुमार बोस ने कभी भी नेताजी का काम करना बंद नहीं किया। तात्कालिक ‘काज’ या काम तो था जनवरी 1941 में भारत से नेताजी के विदेश जाने की योजना बनाना और उसे क्रियान्वित करना। स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद सन् 1957 में उन्होंने नेताजी रिसर्च ब्यूरो की स्थापना की।
नेताजी के अनुज श्री शरतचंद्र बोस का प्रेरणाप्रद जीवनवृत्त, जो कालखंड की महत्त्वपूर्ण घटनाओं पर भी प्रकाश डालता है।

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